गन्ने के खेत में मेरी चुदाई हो गयी। गांव में चुदाई की कहानी। बात कुछ साल पुरानी है जब मैं बिहार में एक सरकारी स्कूल में टीचर के तौर पे प्राइमरी क्लास को पढ़ाती थी. स्कूल एक गाँव में था, और स्कूल से एक छोटा पर कच्चा रास्ता खेतों से होकर मेरे कमरे तक जाता था.
स्कूल की छुट्टी शाम छः बजे होती थी. आम तौर पे सरकारी स्कूल में पढ़ रहे बच्चों के माता पिता बच्चों का ज़्यादा ध्यान नहीं रखते पर मेरी एक स्टूडेंट चारु, उसके पिता रमेश अक्सर स्कूल आते और अपनी बेटी की पढ़ाई के बारे में पता करते.
मुझे भी उनसे मिलके उनके एक ज़िम्मेदार पिता होने का आभास होता. वो रोज़ अपनी बेटी को छुट्टी के समय स्कूल से लेने आते और उसी कच्चे रास्ते से, मेरे आगे पीछे ही वापस जाते.
इसी बीच वो मेरे से अपनी बेटी के बारे में बात भी कर लेते और कभी कभी मेरी सुंदरता की तारीफ़ भी कर देते. जब वो मेरी तारीफ़ करते तो मुझे अच्छा लगता और मैं हल्के से मुस्कुरा भी देती जिसको शायद उन्होंने कई बार भाँप भी लिया था.
रमेश पेशे से किसान था, और क़द काठी में मज़बूत, लम्बा क़द, सिर गंजा, बहुत साँवले और इकहैरे बदन का आदमी था, रमेश!
उनकी बोली थोड़ी अक्खड़ थी, जैसे कि बिहारियों की अक्सर होती है.
मैं अपने बारे में भी बता दूँ. मैं 42 साल की एक साँवली, 5′ 9″ लम्बी, 38:-36:-42 के आकर्षक जिस्म वाली औरत हूँ जिसका कुछ समय पहले तलाक़ हो चुका है.
हाइट लम्बी होने के कारण, आप मुझे ना पतली कहेंगे और ना मोटी पर एक सामान्य औरत जो देखने में आपका मन लुभा ले. मैं जिस्म से बहुत गरम हूँ और पति से अलग होने के बाद से किसी लंड को ना खाने के कारण बहुत भूखी भी.
मैंने कुछ समय से महसूस किया था, कि एक अच्छे, गठीले मर्द को देख कर मेरी चुत एकाएक पानी छोड़ने लगी थी.
एक दिन चारु स्कूल नहीं आई पर शाम को रमेश रोज़ की तरह स्कूल के बाहर खड़े थे.
मैं अपने रास्ते चलने लगी और वो मेरे पीछे पीछे उसी कच्चे रास्ते पे थे. कुछ दूर जाकर मैंने उनसे चारु के बारे में पूछा तो वो बोले की चारु अपनी माँ के साथ अपनी नानी के गई है.
उन्होंने यह भी बताया की उनकी पत्नी पेट से है और वो अब डिलिवरी के बाद वापस आएगी.
सर्दी के दिन थे तो अँधेरा हो चुका था. वो चलते हुए मेरी तारीफ़ कर रहे थे और मुझे कुछ अलग महसूस हो रहा था. मुझे ठोकर लगी और मेरे हाथ से एक फ़ाइल ज़मीन पे गिर गई.
मैं उसको उठाने के लिए नीचे बैठी तो मैंने देखा कि रमेश मुझे घूर रहा था. मेरी नज़र रमेश की धोती पे पड़ी तो उसके खड़े लंड को मैं भाँप गई.
मैंने पूछा:- आप ऐसे क्या देख रहे हैं?
तो रमेश बोला:- आप बहुत सुंदर हो मैडम जी और मैं आपको चाहने लगा हूँ.
इस दौरान मैं काग़ज़ उठा रही थी और मेरी पीठ उनकी तरफ़ थी. इससे पहले मैं कुछ कहती या करती, रमेश ने मेरे कूल्हे हाठों में भर के ज़ोर से दबा दिये और साथ ही मेरी चुत से गान्ड तक अपनी उँगलियाँ दौड़ा दी.
इससे मेरे रोंगटे खड़े हो गए और चुत में हलचल मच गई.
मैंने पलट कर रमेश को घूर के देखा और डाँटना शुरू ही किया था, कि उसने मुझे आँख मारी और एक पप्पी हवा में उछाल दी.
उस समय उस कच्चे रास्ते पे दूर दूर तक कोई नहीं था, और खेतों में लम्बी लम्बी गन्ने की फ़सल थी.
माहौल का फ़ायदा उठाते हुए रमेश ने मेरे स्तनों पे हाथ रख, मुझे अपनी आग़ोश में ले लिया.
मैं झटपटाई और ख़ुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी कि उन्होंने मेरे होंठों पे अपने होंठ रख दिए.
मैंने उसको धकेलने की कोशिश की पर उसकी ताक़त के आगे मेरे प्रयास बेकार थे और वो मुझे अपनी गोद में उठा के खेतों के बीच ले गया.
वहाँ से दूर दूर तक ना कोई इंसान था, ना इंसान की जात और मैं समझ गई थी कि आज हर हाल में मेरी चुदाई होकर ही रहेगी. क्यूँकि मेरी चुत भी पानी छोड़ रही थी और मैं बहुत समय प्यासी भी थी, मैंने मन बना लिया था, कि इस मौक़े का पूरा फ़ायदा उठाऊँ.
अब तक हम खेतों के बीच पहुँच गए थे और रमेश ने मुझे ज़मीन पे पटक के मुझे ज़ोरदार दो थप्पड़ लगा दिए.
मैं होश में आती, उससे पहले उसने मेरी साड़ी मेरे बदन से अलग कर उसको ज़मीन पे बिछा मुझे उसके लेटने को मज़बूर कर दिया. मैं उसके थप्पड़ों से घबराई, जैसे उसने कहा वैसे करने लगी.
रमेश ने बड़ी बेरहमी से मेरे कपड़े मेरे शरीर से अलग किए और अपनी धोती कुर्ता उतार साइड में फेंक दिया, उसके आठ इंच लम्बे और ढाई इंच मोटे काले लंड को देख कर मुझे कंपकँपी छूट रही थी और रोमांच भी हो रहा था, कि मेरी चुदाई एक असली मर्द से होने वाली है.
रमेश ने मेरे स्तनों से खेलना शुरू कर दिया पर उसका खेलना मुझे दर्द दे रहा था, क्यूँकि वो मेरे निप्पलों को बेदर्दी से मसल रहा था. ऐसा लग रहा था, जैसे वो बहुत लम्बे समय से चुत ढूँढ रहा था, और अब उसको हाथ आई तो वो सारी कसर पूरी करना चाहता था.
मैं यह सोचकर उसका साथ नहीं दे रही थी कि अगर इस बारे में किसी को पता चला तो मेरी इज़्ज़त ख़राब होगी और वैसे भी मैं वहाँ अकेली रहती थी तो मेरे लिए सावधान रहना बहुत ज़रूरी था. पर अब मैं दिखावटी ना को भूल अपनी रियलकहानी को पूरा करना चाहती थी.
तो मैंने सब लाज हया त्याग के रमेश का साथ देना शुरू कर दिया.
वैसे भी मैं बहुत लम्बे समय से प्यासी थी और मुझे इससे अच्छा मौक़ा और लंड शायद नहीं मिलता.
रमेश ने मेरे पूरे शरीर को अपने चुम्मों से ढक दिया और वो बीच बीच मुझे काट भी रहा था. जहाँ उसका एक हाथ मेरे शरीर पे ऊपर से नीचे तक मेरा मर्दन कर रहा था, वहीं उसका दूसरा हाथ मेरी चुत में ऊँगली कर मुझे चरम पे ले जा रहा था. उसका जंगली रवैय्या भी मुझे सुख दे रहा था.
रमेश ने मेरी चुत को चाटने के लिए जैसे ही अपना मुँह मेरी चुत पे रखा, मैं एक झरने की तरह बहने लगी और मैंने रमेश का पूरा मुँह अपने रस से भर दिया.
रमेश के होंठों से जहाँ मेरा रस बह रहा था, वहीं जितना सम्भव था, रमेश ने मेरे रसों को अपने गले से नीचे उतार लिया.
उसकी आँखों में नशा साफ़ नज़र आ रहा था, और अब वो अपने लंड को मुझे चुसाना चाहता था.
मुझे उसके लंड से एक अजीब महक आ रही थी और वो बहुत साफ़ भी नहीं था, पर मेरे मना करने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा और उसने मेरे बालों को पकड़, अपना लंड मेरे मुँह में ठूँस दिया.
उसको चूसने में मुझे धीरे धीरे मज़ा आने लगा पर वो इतना मोटा था, कि उसको मुँह में लेने में मेरे मसूड़े दर्द करने लगे थे.
थोड़ी ही देर में रमेश के लंड ने अपना बहुत सारा पानी मेरे मुँह में छोड़ दिया. उसके झड़ते लंड ने मेरे मुँह के अलावा मेरे पूरे चेहरे, बाल, मेरे चूचों और पेट को भी चिपचिपा कर दिया था.
इतना पानी झाड़ने के बाद भी रमेशका लंड जैसे का तैसा खड़ा था.
अब रमेशने ख़ुद को मेरे ऊपर लिया और अपने लंड को मेरी चुत पे टेक दिया.
मैं आँखें बन्द किए इंतज़ार कर रही थी कि कब ये धक्का लगाए और मुझे जन्नत की सैर कराए और वो अपने लंड को मेरी चुत से हल्के से छुआ के जैसे इंतज़ार कर रहा था.
मैंने आँखें खोल के उसका देखा और उसने एक ज़ोरदार प्रहार के साथ अपने मूसल को मेरी संकरी चुत में पेल दिया. इस अचानक हुए हमले से मेरे मुँह से चीख़ निकली जिसको सुनने वाला वहाँ दूर दूर तक कोई नहीं था.
मेरी आँखों से आँसू निकल गए थे पर जो सुख मुझे रमेशदे रहा था, उसका इंतज़ार मैं जाने कितने सालों से कर रही थी.
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रमेशएक साण्ड की तरह मेरे ऊपर चढ़ाई कर रहा था, और मैं भी अब उसकी हर ठप का आनन्द ले रही थी. मैं रमेशके चेहरे को चाट रही थी और उसके पसीने के नमकीन स्वाद का आनन्द ले रही थी.
रमेशकी ताबड़तोड़ चुदाई से मैं दो बार झड़ चुकी थी कि रमेशने मेरे कंधे पे अपने दाँत गाड़ मुझे बहुत ज़ोर से काठते हुए एक चिंघाड़ के साथ मेरे अंदर ही अपना पानी छोड़ दिया और मेरे ऊपर ढेर हो गया.
झड़ने के बाद भी रमेशमेरी चुत में हल्के धक्के लगा रहा था, और उसके लंड से गिरती हर बूँद मैं महसूस कर सकती थी.
मैंने रमेशको बोला:- बहुत देर हो गई है, अब मुझे अपने कमरे के लिए चलना चाहिए.
पर उसका मन कुछ और था. बहुत अंधेरा हो चुका था, पर उसको किसी बात की कोई परवाह नहीं थी. उसको जो चाहिए था, वो उसके नीचे था, – मैं और मेरी चुत.
मैंने उठने की कोशिश की तो उसने मुझे एक और थप्पड़ लगा दिया और बोला:- आज रात भर तेरी चुदाई होनी है. फिर चाहे यहाँ खेतों में या मेरे घर या तेरे कमरे पे, पर चूदाई पूरी रात करूँगा और तब तक करूँगा जब तक तू यहाँ है.
मैंने रमेश को बोला कि वो जब चाहे मुझे और मेरी चुत को भोग सकता है पर उसका प्यार जताने का तरीक़ा कुछ अलग था, वो थोड़ा जंगली था, और उसने बड़े अल्हड़ तरीक़े से मेरे गाल खींचते हुए कहा:- अब तू मेरी रांड है और मैं जब चाहूँगा, जो चाहूँगा, वो करूँगा. मुझे तुझसे पूछने की ज़रूरत नहीं है साली!
रमेशका लंड फिर खड़ा हो चुका था, और उसने एक बार फिर उसको मेरी चुत में पेल दिया.
उस रात रमेशमें वहाँ खेत में मेरी तीन बार चुदाई की और जब सुबह होने को आई तो उसने मुझे उठा कर अपने कमरे पे जाने को बोला.
मेरी चुत और पेट में बहुत दर्द हो रहा था, और मुझे चलने में भी दर्द हो रहा था, मैंने जैसे तैसे अपने कमरे तक का रास्ता पूरा किया और अपने बिस्तर पे जाकर सो गई.
मैं उसके बाद वहाँ क़रीब एक साल और रुकी और रमेश ने मेरी लगभग रोज़ ही बेदर्द चुदाई की.
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